पूर्व मंत्री की “कर्मा वेकेशन” मनाने हुई जेल में “वाइल्ड कार्ड एंट्री” : त्रयम्बक शर्मा

Former minister gets “wild card entry” in jail to celebrate “Karma Vacation”, Trayambak Sharma- Former Excise Minister Kawasi Lakhma arrested by ED, Cartoon Watch, Editor, Raipur, Chhattisgarh, Khabargali

खबरगली (साहित्य डेस्क) छ.ग. में हाल ही में पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया है. इस पावन मौके पर हमारे पूर्व मंत्री ने बड़ी ही मासूमियत से कहा कि वे अनपढ़ हैं और जहां अधिकारियों ने कहा वहां दस्तखत कर दिया. ये वही मासूम व्यक्ति हैं जो नक्सली हमले में दर्जन भर नेताओं के मरने वाले जत्थे में शामिल थे और फायरिंग के दौरान एक बाईक पर बैठ कर गायब हो गये थे. वे अपने आपको छ.ग. का लालू यादव समझते हैं और लोग उन्हें प्यार से दादी कहते हैं, पता नहीं इसके पीछे क्या कहानी है. खैर उनका महिमा मंडन करना हमारा काम नहीं है.

छ.ग. में पिछली सरकार ने जो लूट खसोट की उसकी गूंज पूरे देश में फैल चुकी है और उसका ही परिणाम था कि अभी जेल में तीन आईएएस, एक महिला अधिकारी, अनेक ठेकेदारनुमा नेता अपना कर्मा वेकेशन मना रहे हैं. अब ये माननीय पूर्व मंत्री भी उनके वेकेशन में वाइल्ड कार एंट्री लेकर पहुंच गये हैं वह भी अपने पुत्र के साथ. अब सवाल यह उठता है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में ऐसी क्या कमी है कि पढ़ लिख कर आईएएस बना व्यक्ति भी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद है और अनपढ़ होकर भी मंत्री बना व्यक्ति भी जेल चला गया. मतलब अनपढ़ और आईएएस एक बराबर हो गये. गणित के सवाल तो ऐसे ही हल होते थे.

हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसी है कि वह हमें सिर्फ प्रतिस्पर्धा सिखाती है और ऐन केन प्रकारेण सफलता प्राप्ति को महत्व देती है. हमारे ही प्रदेश में पीएससी की परीक्षा में भी घोटाला हुआ और अनेक लोगों ने सात पीढ़ी के लायक धन अर्जित करने के बावजूद अपने बच्चों को सरकारी नौकरी दिलाने में पीछे नहीं रहे. हमें फिर से अपनी जड़ों की ओर जाना होगा जहां हम पूरे विश्व को अपना मानते थे, पड़ोसी को अपने रिश्तेदार से ज्यादा महत्व देते थे, दूसरों के बारे में सोचते थे, खाना फेंकने के पहले उसे किसी गरीब या पशु को खिलाने का सोचते थे, पानी बर्बाद नहीं करते थे आदि आदि. उसी तरह हमें यह भी शिक्षा दी जाती थी कि पूत कपूत तो क्या धन संचय, पूत सपूत तो क्या धन संचय ! अर्थात यदि आपका पुत्र या पुत्री सपूत है मतलब समझदार है तो आपको उसकी चिंता करने की वैसे ही कोई आवश्यकता नहीं है और यदि आपका पुत्र या पुत्री बिगड़े हुये हैं तो आप कितना भी धन अर्जित कर लो वह लुटा के ही मानेगा.

इस शिक्षा को वर्तमान भ्रष्ट नेताओं, अधिकारियों और व्यापारियों ने सिरे से नकार दिया है. उसी तरह हमें यह बताया जाता था कि पैसा साधन है साध्य नहीं है. आज की अंग्रेज पीढ़ी यह पूछ सकती है व्हाट इस दिस “साध्य” ? वह उसे गूगल करके देखेगी. सरल शब्दों में समझाना हो तो हम यह कह सकते हैं कि पैसा आपकी “कार” है मंजिल नहीं है. आज पैसे को ही मंजिल मान लिया गया है. सिर्फ मेरा परिवार समृद्ध रहे बाकी का नहीं यह समाज का नियम नहीं था. जो समृद्ध होता था वह गरीबों और जरूरतमंद लोगों के लिये सोचता था. दान देने की परंपरा थी, उसका महत्व था. अब “रिश्वत” देने की परंपरा है और “गिव एंड टेक” की परंपरा है.

यदि आप किसी का अकारण भला कर दोगे तो वह चिंतित हो जायेगा कि यह मेरा भला क्यों कर रहा है, इसके पीछे उसका क्या उद्देश्य है ? हमारे प्रदेश के एक बहुत प्रतिष्ठित नेता की पैसे लेते हुये सीडी बन गई थी और उनका पूरा कैरियर समाप्त हो गया था. वे मूंछो पर ताव देने के लिये जाने जाते थे. शेरो शायरी का भी शौक था. राजा थे, सेहत से भी किसी योद्धा से कम नहीं थे. उनकी सीडी में पैसे लेते हुये भी उन्होंने शेर कहा था जो आज तक लोगों को याद है - पैसा खुदा तो नहीं लेकिन खुदा से कम भी नहीं ! पता नहीं यह शेर किसने लिखा था पर ऐसी पंक्तियों ने अनेक लोगों को बर्बाद किया है. पैसा दिमाग से कमाना, मुनाफे से कमाना और रिश्वत से कमाने में फर्क है.

हमारे परिवार में कहा जाता था कि यदि बुराई का पैसा घर में आयेगा तो वो बिमारी या ऐसे ही किसी काम में चला जायेगा. वह आपको सुकून नहीं देगा. यह भी कहा जाता था कि हमने आज तक किसी को मरने के बाद एक पैसा भी ले जाते नहीं देखा फिर भी लोग पैसे के पीछे इतने पागल क्यों हैं. हम वो पीढ़ी हैं जिसने अमिताभ बच्चन को यह गाते सुना है - काहे पैसे पे इतना गुरूर करे है, यही पैसा तो अपनों से दूर करे हैं, दूर करे है !! वहीं हमने महमूद को भी यह गाते देखा कि - ना बाप बड़ा ना मैया, द होल थिंग इस दैट के भैया सबसे बड़ा रूपैया !! यह गाना व्यंग्य था पर आज यह हकीकत बन गया है. ईश्वर धन पशुओं की आत्मा को शांति दे !!

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