डॉक्टर सारिका सिंघानिया की कलम से एक रूमानी कहानी आप सब के लिए
ख़बरगली (साहित्य डेस्क)
उमड़ -घुमड घनीयारे बादल गरज रहे थे ,बैरी बिजुरी चमक- चमक अघा रही थी, रिमझिम बारिश की बौछार सूनी धरा के आंचल को तृप्त कर रही थी ।प्रेमील महोत्सव से हर्षित बयार के कदमों को भी पंख लग गए। अपने संग- संग लता के आंचल को भी वह उड़ा रही थी। लता अपना आंचल संभालती, सम्मोहित सी गुनगुनाने लगी, “पहला प्यार लाए जीवन में बाहर, पहला प्यार”। वह तो सुधीर के लिए गैस पर चढ़ाई चाय जब उबलने लगी, तो लता की तंद्रा भंग हुई। पर पच्चीस साल पुराने पहले प्यार की ताजगी अब उसकी रग -रग में उबाले मारने लगी।
यह सावन की फुहार ही है, जब भी आती है, पहले प्यार पर चढ़ी समय की गर्द को धो देती है। और यादों के प्रतिबिंब में दिखाई देती है, कक्षा दसवीं में पढ़ने वाली पन्द्रह बरस की लता। दो चोटियों को झूलाते, स्कूल बैग पीठ पर लटकाए, स्कूल यूनिफार्म की जेब में हाथ डाले। चिर -परिचित रास्ते पर थके- हारे पर घर जल्दी पहुंचने की बेकरारी में फुदकते लता के कदम को उस दिन अचानक ब्रेक लगा। अच्छा ही हुआ, नहीं तो आज तो टक्कर निश्चित थी।
लता अपनी धुन में जा रही थी। अचानक बगल वाली सड़क से साइकिल चलाता सत्रह साल का कक्षा बारहवीं का छात्र सुधीर, धड़धड़ाता लता से टकराते- टकराते बचा। सुधीर साइकिल से खुद को गिरने से बचाते हुए उतरा, तो, दोनों की नजर एक दूसरे पर पड़ी। और दिल की घंटियां बजने लगी। कुछ अनजाना पर मोहक सा यूँ तरंगित हुआ, कि, दोनों की नजरें एक दूसरे से हट ही नहीं पा रही थी। भरी सड़क पर सुध- बुध खोए बुत बने, वह दोनों यूं ही घंटों खड़े रहते । पर यह बैरी सावन की फुहारों को कहां चैन।ईर्ष्या के मारे यूं बरसी की दोनों की सुध लौट आई। सुधीर ने साइकिल में लगी छतरी खोली, और लता को कहा, “भीग जाओगी। आ जाओ। तुम्हारा घर कहां है। मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं”। सुधीर की मोहिनी के वशीभूत, लता सब कुछ भूल भाल के, सुधीर के संग चल पड़ी। सुधीर जो जो पूछता रहता,लता उसका उत्तर यंत्रवत देती जा रही थी ।घर नजदीक आ रहा था पर लता का जी यूँ कर रहा था, कि काश यह रास्ता खत्म ही ना हो, और सुधीर के संग यूं ही चलती रहे।
बातचीत के दौरान लता को यह पता चल गया था कि, सुधीर के पिताजी का तबादला इसी शहर में अभी -अभी हुआ है। सुधीर ने लता के ही स्कूल में एडमिशन लिया है। सुधीर और लता के पिता सिंचाई विभाग में कार्यरत हैं, और एक ही कॉलोनी में रहते हैं। अब तो लता स्कूल से आते जाते वक्त,रिसेस में , शाम को कॉलोनी में टहलते वक्त, बेताब निगाहों से सुधीर को खोजती थी। जब भी सुधीर से सामना होता तो पहली मुलाकात की तरह ही वशीभूत हो जाती । जोर- जोर से धड़कता दिल, बेबाक नजर पर खामोश जुबां और बेसबब खुशी, सुधीर को देख खुद में होने वाले यह परिवर्तन लता की समझ से परे थे। और वह समझना भी कहा चाहती थी ।वह तो आकंठ इसमें डूबे रहना चाहती थी। अब लता की इकलौती मनोकामना सुधीर से रूबरू होना हो गई थी। मासूम सी यह चाहत, लगता ईश्वर भी चाहते थे, पूरी हो जाए। तभी तो लता को सुधीर कहीं ना कहीं तो नजर आ ही जाता। लता को कभी लगता कि वह सपना तो नहीं देख रही। पर दूसरे ही पल, लता को देख सुधीर के लबो पर आई मुस्कुराहट, लता को एहसास करा देती कि यह सपना नहीं सच है।
आंखों -आंखों में हुए पहले प्यार को कब एक साल हो गया, सुधीर और लता को पता ही नहीं चला। दोनों की बोर्ड परीक्षाओं का परिणाम आ गया, और दोनों मेरिट में आए। सुधीर का आईआईटी में सिलेक्शन हो गया और आगे की पढ़ाई के लिए वह रुड़की जा रहा था। यह खबर जब लता को लगी तो उसे यूं लगा कि उसका दिल तार-तार हो गया है। दर्द से बोझिल दिल को सावन की फुहार भी तेजाब की बूंदों सी लगने लगी। दिल की पीड़ा जब बर्दाश्त के बाहर होने लगी,लता हिम्मत जुटा सुधीर के पास जा पहुंची, और फफक- फफक कर रोने लगी। कुछ ना कहते हुए भी उसने सब कुछ कह डाला। सांत्वना देने के लिए सुधीर ने ज्यों ही लता का हाथ छुआ, लता को यूं लगा मानो कोई विद्युतीय झटका लगा हो। एक चुंबकीय आकर्षण ने लता को सुधीर के आलिंगन में ला खड़ा किया।कई मिनट तक वे ऐसे ही खड़े रहे।फिर सुधीर लता के आंसू पोंछते हुए, अपने से अलग करते हुए, परिपक्वता से बोला, “लता तुमसे दूर जाना, मेरे लिए भी बहुत मुश्किल है। पर तुम्हारे काबिल बनने के लिए ,हम दोनों को यह जुदाई सहनी पड़ेगी। मेरा तुमसे वादा है, इस दौरान मैं तुम्हें मेरी कमी महसूस नहीं होने दूंगा, और वक्त आते ही तुम्हें अपना बना लूंगा”।
सुधीर की परिपक्वता उस समय लता को कायरता लगी। पर सुधीर के रुड़की जाने के पश्चात सुधीर की कही बातों का तात्पर्य लता को समझ आने लगा। लता ने भी खुद को सुधीर के काबिल बना लेने के लिए पढ़ाई में जी तोड़ मेहनत करना शुरू कर दी। सुधीर वायदे के मुताबिक लता को रोज फोन करता। अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को यूं बयां करता कि, लता को लगता वह सब अपनी आंखों से देख रही है, और सुधीर की जिंदगी में वह पूरी तौर से शामिल है। लता और सुधीर दोनों की पढ़ाई, कैरियर की स्ट्रगल में यूं ही आठ साल बीत गए।
अब सुधीर एक बड़ी कंपनी में प्रतिष्ठित पद पर था ।लता भी कॉलेज में लेक्चरर बन चुकी थी। वायदे के मुताबिक प्यार को उसकी मंजिल तक पहुंचाने का वक्त आ चुका था। सुधीर और लता को पता था ,शादी के लिए माता-पिता को मनाना आसान न होगा। कहाँ आमिषाहारी बंगाली सुधीर, कहाँ निरामिष लता का परिवार। दोनों परिवारों की भाषा, संस्कृति और जाती में अंतर था। जिस लता के लिए सुधीर ने आठ साल की तपस्या की और जिस लता के साथ सुधीर ने भविष्य के सारे सपने संजोए हैं उसके लिए आमिष त्याग क्या बड़ी बात है। पर लता के परिवार वालों को सुधीर और लता के प्यार की गहराई समझने में कुछ समय तो लगा । अंततः उन्होंने रजामंदी से दोनों का विवाह धूमधाम से किया। विवाह के कुछ ही समय पश्चात सुधीर और लता एक दूसरे के परिवार में इस तरीके से घुल मिल गए जैसे दूध में शर्करा, समस्त भेदभाव भूलकर एकसार हो गए। मंजिल तक पहुंचा, यह पहला प्यार देखने सुनने वालों के लिए एक किवदंती ही है।
- डॉक्टर सारिका सिंघानिया रायपुर (छत्तीसगढ़)
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