
बिहार सहित 4 राज्यों के राज्यपाल रहे, उनके कार्यकाल में आज ही के दिन आर्टिकल-370 हटा था
नई दिल्ली (खबरगली) जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल और अनुभवी नेता सत्यपाल मलिक का मंगलवार को दिल्ली में निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में 79 वर्ष की आयु में अंति सांस ली। मलिक के निधन की खबर आने के साथ ही राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर दौड़ गई। अलग-अलग सियासी दलों के नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।
ऐसा रहा सत्यपाल मलिक का सफर
सत्यपाल मलिक का जन्म जुलाई 1946 में उत्तर प्रदेश के बागपत में आने वाले हिसावादा गांव में हुआ था। उन्होंने मेरठ यूनिवर्सिटी से बीएससी की पढ़ाई की। इसी दौरान उन्होंने छात्र राजनीति में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। इसके आगे उन्होंने कानून की पढ़ाई की और इसके बाद मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हो गए। सत्यपाल मलिक 1965-66 में पहली बार राजनीति में राम मनोहर लोहिया की समाजवाद वाली विचारधारा से प्रभावित होकर उतरे थे। 1966-67 में छात्र राजनीति के जीवन में ही उन्होंने मेरठ कॉलेज स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद उनका कारवां जा पहुंचा मेरठ यूनिवर्सिटी (अब चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी) के छात्रसंघ चुनावों तक पहुंचा और वे छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए।
1. चौधरी चरण सिंह की पार्टी से शुरू की राजनीति
सत्यपाल मलिक सियासत की मुख्यधारा में 1970 के बाद आए। वे शुरूआत में चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) का हिस्सा बने। उन्होंने अपना पहला चुनाव भी इसी पार्टी से लड़ा था। बागपत से उन्होंने जीत भी हासिल की और विधानसभा में पार्टी के मुख्य व्हिप नियुक्त हुए। अगले साल यानी 1975 में जब भारतीय क्रांति दल बाद में लोकदल का हिस्सा बन गई, तो सत्यपाल मलिक लोकदल के अखिल भारतीय महासचिव नियुक्त हुए। इस पार्टी ने उन्हें 1980 में राज्यसभा के लिए नामित भी किया।
2. लोकदल से कांग्रेस तक की यात्रा
सत्यपाल मलिक के जीवन का अगला चरण जुड़ता है कांग्रेस से। 1984 में राज्यसभा में रहते हुए वे कांग्रेस का हिस्सा बन गए। बाद में 1986 में कांग्रेस की तरफ से उन्हें राज्यसभा का चुनाव लड़ाया गया। इसी के साथ कांग्रेस ने उन्हें उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति का महासचिव नियुक्त कर दिया।
3. पहले बनाई अपनी पार्टी, फिर जनता दल में कराया विलय
हालांकि, मलिक और कांग्रेस का यह साथ लंबा नहीं चला और 1987 में कांग्रेस पर जब बोफोर्स घोटाले के आरोप लगे तो सत्यपाल मलिक ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और अपनी पार्टी जन मोर्चा बना ली। बाद में इस पार्टी का उन्होंने 1988 में जनता दल में विलय करा लिया। बाद में कांग्रेस के खिलाफ मलिक ने विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ शामिल होकर देशभर में जन-जागरण बैठकों में हिस्सा लिया और कांग्रेस के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। बाद में केंद्र में जनता दल की सरकार बनने के बाद उन्हें पार्टी का सचिव और प्रवक्ता नियुक्त किया गया। 1989 में उन्होंने अलीगढ़ से जनता दल के टिकट पर चुनाव भी लड़ा और जीत हासिल की।
4. और फिर भाजपा के साथ आए सत्यपाल मलिक
2004 में भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने बागपत लोकसभा सीट से पार्टी के टिकट पर चुनाव भी लड़ा। हालांकि, उन्हें जीत नहीं मिली। इसके बाद 2005-06 वे उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए। 2009 में भाजपा के किसान मोर्चा के अखिल-भारतीय प्रमुख नियुक्त हुए थे। भाजपा में मलिक को सबसे बड़ी नियुक्ति 2012 में मिली थी, जब उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा की घोषणापत्र समिति में कृषि मुद्दों पर बनी उप-समिति की अध्यक्षता की थी। 2014 में मलिक को एक बार फिर भाजपा में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्होंने किसानों को भाजपा के पक्ष में लाने के लिए कई रैलियों का आयोजन किया।
यह वह दौर था, जब सत्यपाल मलिक लगातार भाजपा के लिए अहम नेता के तौर पर काम करते रहे। 2017 में पार्टी ने उन्हें पार्टी संगठन से हटाकर बिहार का राज्यपाल नियुक्त कर दिया। इसके बाद अगस्त 2018 में उन्हें जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया। वे जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खतरे के शुरू होने के बाद से राज्यपाल का पद संभालने वाले पहले नेता रहे। एक साल बाद आज के ही दिन 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया था। तब सत्यपाल मलिक के जरिए ही केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में कानून व्यवस्था को संभाला था। 2019 में जब जम्मू-कश्मीर को पुनर्गठित करने का फैसला किया गया तब सत्यपाल मलिक को पहले गोवा का राज्यपाल नियुक्त किया गया। हालांकि, अगस्त 2020 में उन्हें मेघालय का राज्यपाल बनाया गया। उन्होंने अक्तूबर 2022 तक यहां पद संभाला।
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