सफलता की कहानी:रेशमी धागों से महिलाएं बुन रही हैं जीवन के ताने-बाने

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रायपुर (khabargali) स्व सहायता समूह की महिलाएं अब कोसा से धागा निकालने की कला सीखकर अपने जीवन के ताने-बाने बुन रही हैं। दंतेवाड़ा जिले के गीदम ब्लॉक के एक छोटे से गांव बिंजाम की स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने अपनी आमदनी को बढ़ाते हुए जीवन स्तर को बेहतर बना रही हैं। पूर्व में आय के स्रोत के रूप में उनके पास सिर्फ खेती, घर के बाड़ी व वन उत्पादों से जीविकोपार्जन कर रही थीं। स्व सहायता समूह की महिलाओं ने दंतेवाड़ा कलेक्टर और सीईओ द्वारा सुझाए गए रोजगार के अवसर कोसा से धागा करण के कार्य को काफी लगन व मेहनत से सीखा और प्रशिक्षण के दौरान ही 12 हजार रूपये का धागा बनाकर अपने कमाई को बढ़ाया। प्रशिक्षण के उपरांत स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने कोसा से धागा निकालने की कला को निखारते हुए निरंतर इस कार्य को कर रही हैं, और प्रतिमाह 3 से 4 किलो का लक्ष्य निर्धारित कर धागा बना रही है। इससे उन्हें प्रति किलो 1 हजार से 15 सौ तक का लाभ धागा बनाने से प्राप्त हो रहा है। इस प्रकार एक माह में चार से पांच हजार की आमदनी उन्हें हो रही है।

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कोसा से धागा निकालने का कार्य छत्तीसगढ़ के कुछ चुनिंदा जगहों पर ही किया जाता है, और एक बार धागा निकालने की कला सीखने के बाद कमाई का जरिया पारंपरिक रूप से यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती जाती है। स्व-सहायता समूह की महिलाओं द्वारा कोसा खरीदी से लेकर धागा बनाने से बेचने तक का काम सीख चुकी हैं। कोसा से धागा निकालने की प्रक्रिया में सबसे पहले महिलाएं कोसे की ग्रेडिंग करती हैं और ग्रेडिंग के उपरांत प्रतिदिन के हिसाब से कोसा उबाला जाता है और उबले हुए कोसे से धागा बनाया जाता है। धागा पैकिंग कर व्यापारियों को बेच दिया जाता है प्राप्त पैसे से कोसे का पैसा रेशम विभाग को दिया जाता है। वह बचे हुए पैसे से महिलाएं अपना इस घरेलू व्यवसाय को आगे बढ़ा रही हैं और स्वावलंबन की राह खुलने से अब महिलाओं की किस्मत भी कोसे की तरह चमकेगी।

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