खबरगली (साहित्य डेस्क) हमारे देश के संविधानको पूरी तरह से कंबल में लपेटकर सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं का गला घोंटकर सारी शक्ति अपने हाथ में लेने के इरादे से बनाया गया था। उस घटना को अब पचास साल होने को हैं। जैसे-जैसे सदियां खत्म हो रही है, उस घटना को कई लोग भूल रहे हैं, जबकि कुछ लोग जानबूझकर उसे गुमनामी के पर्दे के पीछे धकेलने का नेक प्रयास कर रहे हैं। लेकिन चूंकि वह घटना देश के इतिहास और लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए इस बात का हमेशा ध्यान रखना जरूरी है कि उसे भुलाया न जाए।
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