
साइकोलॉजिस्ट & काउन्सलर डॉ गार्गी पांडेय की कलम से
साहित्य डेस्क (खबरगली) स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं, जब हम इनके बीच समानता की बात करते हैं, तभी उनके व्यवहार और समाज में उनके व्यक्तिगत नजरियों पर भी चर्चा करते हैं, यह जीवन का एक अभिन्न अंग है। मनोवैज्ञानिक स्थितियों पर विचार आधुनिक मानव समाज की एक बुनियादी मांग बन चुका है, किंतु आज भी कुछ जगह सामाजिक व्यवस्थाओं और व्यक्तित्वों में महिलाओं के प्रति गहरा तिरस्कार, घृणा और हीनता का भाव व्याप्त परिलक्षित होता है। इस प्रवृत्ति को ही मनोविज्ञान की शब्दावली में "मैसोजिनिज़्म" (Misogyny) कहा जाता है, और जब यह किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का स्थायी हिस्सा बन जाए, तो उसे "मैसोजिनिस्टिक पर्सनैलिटी" कहते हैं । यह न केवल स्त्री-विरोधी मानसिकता को बढ़ावा देता है, बल्कि समाज के समग्र मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।
मैसोजिनिस्टिक पर्सनैलिटी एक ऐसा व्यक्तित्व है, जिसमें व्यक्ति महिलाओं के प्रति घृणा, अपमान, असम्मान या हीन दृष्टिकोण रखता है। यह व्यवहार सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दोनों स्तरों पर अभिव्यक्त होता है — जैसे स्त्रियों की सफलता से असहज होना, उन्हें निर्णय से दूर रखना, उनके आत्मसम्मान को चोट पहुँचाना आदि। यह मानसिकता केवल पुरुषों तक सीमित नहीं होती; कई बार महिलाएं भी इस सोच को आत्मसात कर लेती हैं और पितृसत्तात्मक सोच को ही बढ़ावा देती हैं। यह "आंतरिककृत मैसोजिनिज़्म" (internalized misogyny) कहलाता है।
ऐसे व्यक्तित्व के मुख्य लक्षण
1. महिलाओं को तुच्छ या कमतर समझना: ऐसे व्यक्ति अक्सर महिलाओं की क्षमताओं को नकारते हैं और उन्हें नेतृत्व या स्वतंत्र निर्णय से वंचित करना चाहते हैं।
2. यौनिक वस्तुकरण (Objectification): स्त्रियों को केवल उनके शरीर या सौंदर्य के आधार पर आंकना।
3. नारी स्वतंत्रता से असहजता: आत्मनिर्भर, मुखर या सफल महिलाओं को "अभिमानी", "असभ्य" या "घर तोड़ने वाली" कहकर नीचा दिखाना
4. भावनात्मक नियंत्रण: रिश्तों में स्त्रियों की इच्छाओं को नकारना, उन पर मानसिक दबाव बनाना।
5. दोहरी नैतिकता: जो व्यवहार पुरुषों के लिए सामान्य माना जाता है, वही महिलाओं के लिए "अनैतिक" करार दिया जाता है।
मनोवैज्ञानिक कारण मैसोजिनिस्टिक पर्सनैलिटी केवल सामाजिक conditioning का परिणाम नहीं है, इसके पीछे गहरे मनोवैज्ञानिक कारण भी होते हैं:
1. बचपन के अनुभव: किसी पुरुष का किसी स्त्री (जैसे मां या शिक्षक) से नकारात्मक अनुभव, जिसमें नियंत्रण या अपमान शामिल हो, बाद में एक नफरत भरे व्यवहार में परिवर्तित हो सकता है।
2. हीनता की भावना: कई बार पुरुष अपनी विफलताओं या असुरक्षा को छुपाने के लिए स्त्रियों को नीचा दिखाकर स्वयं को श्रेष्ठ महसूस करना चाहते हैं।
3. पुरुषवादी श्रेष्ठता का भ्रम: समाज में "पुरुष ही स्वाभाविक नेता है" जैसी धारणाएं एक झूठा गर्व और अधिकार की भावना पैदा करती हैं।
सामाजिक कारण:
1. पितृसत्तात्मक व्यवस्था: सदियों से पुरुषों को समाज में अधिक अधिकार और स्त्रियों को सीमित भूमिकाएँ दी गईं, जिससे यह मानसिकता गहराई तक समा गई।
2. मीडिया और लोकप्रिय संस्कृति: फिल्मों, गानों, विज्ञापनों और सोशल मीडिया में स्त्रियों का बार-बार उपहास या वस्तु की तरह चित्रण, समाज की सोच को प्रभावित करता है।
3. शैक्षणिक और धार्मिक पक्षपात: कई बार शिक्षा और धार्मिक पाठों में भी स्त्रियों को ‘त्यागमयी’, ‘सेविका’, ‘मौन रहने वाली’ की भूमिका तक सीमित किया जाता है।
प्रभाव:
मैसोजिनिस्टिक व्यक्तित्व के सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन पर गंभीर दुष्परिणाम होते हैं:
स्त्रियों के आत्मसम्मान पर आघात। रिश्तों में विषाक्तता और मानसिक उत्पीड़न। कार्यस्थलों पर लैंगिक असमानता। महिला सशक्तिकरण के प्रयासों में बाधा।
घरेलू हिंसा, साइबरबुलीइंग और यौन उत्पीड़न जैसी समस्याओं की वृद्धि समाधान और सुधार के उपाय:
1. शिक्षा और संवेदनशीलता: स्कूल स्तर से ही बच्चों में लैंगिक समानता, संवेदनशीलता और सम्मान की शिक्षा देना आवश्यक है।
2. मीडिया में सकारात्मक प्रस्तुति: महिलाओं को सक्षम, निर्णायक और प्रेरणादायक रूप में दिखाना।
3. पारिवारिक वातावरण का परिवर्तन: परिवारों को लड़कियों और लड़कों में कोई भेदभाव न करते हुए समान अवसर देना चाहिए।
4. मनोचिकित्सकीय हस्तक्षेप गंभीर मैसोजिनिस्टिक व्यवहार को ठीक करने के लिए काउंसलिंग, थेरेपी और मानसिक स्वास्थ्य सेवा आवश्यक हो सकती है।
5. कानूनी सशक्तिकरण: महिलाओं के खिलाफ हिंसा या भेदभाव पर सख्त कानूनों का पालन और तेजी से न्याय।
उक्त मनोवैज्ञानिक कारणों, प्रभाव और इन समस्याओं के निराकरण के लिए यह जानना आशंका है कि मैसोजिनिस्टिक पर्सनैलिटी केवल एक मानसिक विकृति नहीं, बल्कि सामाजिक असंतुलन का प्रतीक है। यह मानसिकता जितनी स्त्रियों को दबाती है, उतना ही पूरे समाज की प्रगति को भी बाधित करती है। हमें केवल महिलाओं को सशक्त बनाने की नहीं, पुरुषों की सोच को भी पुनर्निर्मित करने की आवश्यकता है। जब तक मानसिकता नहीं बदलेगी, कानून और योजनाएँ भी सीमित प्रभाव ही डालेंगी। हमें नारियों को न केवल आर्थिक दृष्टि से संपन्न देखना है, अपितु उन्हें समाज में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी प्रोत्साहन मिल सके, यह प्रमुख उद्देश्य हो सके, इस दिशा में प्रयास आवश्यक हैं।
- डॉ गार्गी पांडेय, साइकोलॉजिस्ट, काउन्सलर
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