
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पढ़िए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता शिक्षिका श्रीमती के. शारदा की प्रेरक कहानी
खेदामारा (दुर्ग)(खबरगली) राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता शिक्षिका श्रीमती के. शारदा कहती हैं, “बच्चों को यह सिखाना बहुत ज़रूरी है कि जीवन में हर चुनौती को इच्छाशक्ति से पार किया जा सकता है। यही मेरे जीवन का लक्ष्य है।” खेदामारा उच्च प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाती शारदा जी ने बीते 15 वर्षों में, अपनी मेहनत और लगन से दिहाड़ी मजदूरों के बच्चों का जीवन बदलकर शिक्षा की परिभाषा को नई दिशा दी है।

के शारदा की कहानी उनकी जुबानी
“मैं जब 5वी कक्ष में थी, तब मेरी शिक्षिका ने न केवल मुझे पढ़ाई में मदद की, बल्कि मेरे लिए सरकारी योजना के तहत ट्राइसाइकिल का भी इंतजाम करवाया, जिससे मैं आत्मनिर्भर बन पाई। उसी दिन मैंने ठान लिया था कि मैं भी बड़े होकर बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम करूंगी।” शारदा जी ने एमएससी, बी.एड. और अर्थशास्त्र में एम.ए. की डिग्री हासिल की और खेदामारा स्कूल में शिक्षिका बनी। “तब हालात बेहद कठिन थे। बच्चे स्कूल छोड़कर खेतों या अन्य कामों में लग जाते थे, और माता-पिता शिक्षा के प्रति पूरी तरह उदासीन थे।” शारदा जी ने साहसिक कदम उठाते हुए पंचायत से आग्रह किया कि राशन जैसी सुविधाओं को बच्चों की स्कूल में उपस्थिति से जोड़ा जाए और बाल श्रम पर सख्ती से रोक लगाई जाए। यह उपाय सफल रहा, और बच्चे स्कूल आने लगे। इसके बाद उन्होंने और उनके सहयोगियों ने बच्चों की पढ़ाई को रोचक बनाने पर काम किया। उन्होंने सांप-सीढ़ी जैसे खेलों और रोल-प्ले के माध्यम से गणित और इतिहास जैसे विषय सिखाए। कार्टून और एनिमेशन का इस्तेमाल करके कठिन विषयों को आसान और दिलचस्प बनाया। उन्होंने बच्चों को वैदिक गणित के सरल तरीके सिखाए। डिजिटल टीएलएम बनाने के लिए स्कूल के बाद घर पर भी शारदा जी काम करती रहती। साथ ही, उन्होंने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए अलग अलग एनजीओ की मदद से बच्चों के लिए स्वेटर, जूते और स्टेशनरी का इंतजाम भी किया।
इसी बीच, शारदा जी के जीवन में एक कठिन मोड़ आया। उनके दाएं हाथ ने काम करना बंद कर दिया। “यह मेरे लिए बड़ा डरावना क्षण था। मेरे हाथ ही मेरा सहारा थे। मैं रो पड़ी,” वह भावुक होकर बताती हैं। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी थी। बड़े धैर्य से, एक लंबे और कठिन इलाज के बाद, उन्होंने अपने हाथ की क्षमता फिर से हासिल की। COVID-19 के बाद जब बच्चों की पढ़ाई में गति धीमी हो गई। तब शारदा जी ने उनके लिए ‘गणित पुस्तिका’ तैयार की, जिसमें QR कोड के जरिए उनके यूट्यूब ट्यूटोरियल्स तक पहुंचा जा सकता था। राज्य परियोजना कार्यालय, समग्र शिक्षा, रायपुर की ओर से कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों के लिए विशेष ‘गतिविधि-आधारित गणित पुस्तिका' तैयार की गई, जिसमें शामिल 33 शिक्षकों की एक टीम का शारदा जी ने नेतृत्व किया था। उन्होंने 2,000 से अधिक ई-शैक्षिक सामग्री तैयार की है, जिनमें खिलौना पुस्तक, FLN Poem Book, ऑडियो बुक्स, ब्लॉग्स और प्रेरणादायक वीडियो शामिल हैं।
उन्होंने अन्य राज्यों के स्कूलों के साथ बच्चों का वर्चुअल सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी शुरू किया। विनोबा ऐप को शारदा जी एक बड़ा विद्यालय मानती हैं। “यहां से मैं न केवल अन्य शिक्षकों से सीख सकती हूं, बल्कि अपनी सामग्री और नवाचारों को अनगिनत बच्चों तक पहुंचा सकती हूं। शिक्षक के लिए इससे बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है,” वह कहती हैं। उनके अथक कार्य के लिए, उन्हें 2024 में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के हाथों ‘राज्य शिक्षक पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उनके बनाए 250 टीएलएम वीडियो राज्य सरकार की वेबसाइट CGSchool.in पर अन्य शिक्षकों के लिए उपलब्ध हैं। शारदा जी कहती हैं, “अभी सब कुछ ठीक नहीं हुआ है। लेकिन मेरा विश्वास है कि एक दिन ये बच्चे ऊंचाइयों पर पहुंचेंगे। मैं उनमें वह काबिलियत देखती हूं। इसलिए ये बच्चे ही मेरी ताकत हैं, और मैं उनकी।”
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