
कहा - प्रकृति से प्रेम करना भी प्रभु श्रीकृष्ण से सीखें
साल भर भागवत व श्रीराम कथा होते रहे तो सनातन धर्म का भी उत्थान होगा
रायपुर (खबरगली) प्रकृति से प्रेम कैसे करें यह प्रभु श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं। सनातन धर्म में स्पष्ट बताया गया है कि बगैर प्रकृति कोई अनुष्ठान हो ही नहीं सकता। देश में हो रही वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से वायुमंडल एवं प्रकृति को कष्ट होता है इसी प्रकार यह कार्य होता रहा तो एक दिन विनाश संभव है। भागवत कथा,राम कथा की परंपरा साल भर चलती रहे। इसी बहाने लोग 365 दिन यानी साल भर भागवत से जुड़े,साथ ही सनातन धर्म का उत्थान भी होगा।
अग्रोहा कालोनी विष्णुमंगलम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा प्रसंग के माध्यम से कथाव्यास आचार्य झम्मन शास्त्री ने लोगों से प्रकृति की रक्षा के लिए व्यासपीठ से आव्हान किया। पेड़ों के बगैर जीवन की कामना दुर्लभ है। जीवन संभव ही नहीं ,विदेश में नदियां पर्वत पेड़ पौधे को केवल उपभोग की वस्तु ही माना जाता है जबकि भारत ऐसा देश है,जहां नदी और पेड़ों की पूजा होती है। देश में हो रही वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से वायुमंडल एवं प्रकृति को कष्ट होता है इसी प्रकार यह कार्य होता रहा तो विनाश संभव है। हजारों साल पहले ही पता चला कि मानव जाति का अस्तित्व तब तक है। जब तक नदियां , गौ माता है,बच्चे कोई भी त्यौहार हो यदि एक पेड़ रोपने का मन बना लिया जाए तो 135-140 करोड़ आबादी वाले इस देश में अरबो - खरबो की संख्या में पेड़ पौधे लगाए जा सकते हैं।
शास्त्री जी ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण से हम यह सीख सकते हैं की प्रकृति से कैसे प्रेम किया जाए और भगवान श्री कृष्ण यही संदेश देते हैं कि प्रकृति से प्रेम करें । प्रभु ने ये भी बताया है कि इनकी पूजा भी आवश्यक है। सनातन धर्म में बिना प्रकृति के कोई भी अनुष्ठान संपन्न नहीं होते,रासलीला की ही ले लो यह लीला गो लोक की लीला है। व्यक्ति को कोशिश करनी चाहिए कि अहंकार का अंश मात्र भी उनके अंदर मौजूद न रहे। किसी तरह आडंबर से भी बचना चाहिए । लोग आराधना के नाम पर पूजा उपासना के नाम पर दूरी बना लेते हैं। इसे बचाने की जरूरत है। तब जाकर पृथ्वी पर मनुष्य आगामी हजारों वर्षों तक स्वस्थ्य और संपन्न रहेगा ।
शास्त्री जी ने बताया की भागवत कथा राम कथा की परंपरा साल भर चलती रहे। इसी के बहाने लोग 365 दिन यानी साल भर भागवत से जुड़े साथ ही सनातन धर्म का उत्थान होगा। बाल लीला रासलीला के आनंद के साथ-साथ हमें यह भी समझना है कि शिशुपाल और कंस का वध किन परिस्थितियों में हुआ । हमें अति वाचलता, दमनकारी ,हथकंडो से अपने हाथ खींच लेना चाहिए । कथा के दौरान आज रुक्मणी मंगल के पावन उत्सव में मंगल परिणय भगवान लक्ष्मी नारायण स्वरूप रुक्मणी और कृष्ण की पूजन आराधना का कार्य संपन्न हुआ।
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